विपरीत परिस्थितियों में भगवान की कृपा के दर्शन करे बेटा अच्छा चलता है तो उतना फायदा नहीं होता जितना बेटा, पत्नी, या परिवारवाले ग़लत चलते है तो होता है अच्छा चलेंगे तो मोह-ममता में समय बीत जाएगा, बुरा चलेंगे तो वैराग्य होगा
राजा लोग देखते थे की हमारा बेटा हमारा कहना नहीं मानता...ऐसा है-वैसा है..तो दुखी होते थे फिर जब सत्संग मिलता तो समझते की भगवान की कृपा है कहना मानता तो ममता में मर जाते, नहीं मानता तो ठीक है, वैराग्य हो गया
आज के ज़माने में टी.वी, चैनलों, अखबारों और वातावरण ने बच्चे-बच्चियों का स्वभाव ऐसा बना दिया की माँ-बाप का कहना नहीं मानते, उलटा चलते है तो माँ-बाप को वैराग्य आता है पहले सत्संग से, विवेक से वैराग्य आता था, फिर लोग एकांत में चले जाते थे अब इतना विवेक-वैराग्य नहीं रहा तो भगवान गड़बड़ द्वारा वैराग्य दिलाते है की चलो, बेटों गड़बड़ करो, बेटियों गड़बड़ करो, भाइयों गड़बड़ करो ताकि संसार से वैराग्य आये
"महाभारत" में लिखा है : दो अक्षरों से बंधन है और तीन अक्षरों से मुक्ति है " मम, यह मेरा है-बेटा मेरा है, पत्नी मेरी है, धन मेरा है.....मम, अर्थात ममता से बंधन है "निर्मम" - यह मेरा नहीं है-मुक्त हो गये हम को मुक्ति चाहिये तो मुक्ति आकाश- पाताल में नहीं है ममता, आसक्ति का त्याग हो गया तो मुक्त ही है शरीर तो ऐसे भी समय पाकर मुक्त हो हो जाएगा, मर ही जायेगा मन में आसक्ति नहीं है तो दोबारा जन्मना नहीं है भगवान् का ध्यान, भजन किया, आनंद लिया तो उस आनंद में लीन होना है
-------------संत श्री आसारामजी आश्रम द्वारा प्रकाशित " ऋषि प्रसाद " पत्रिका से , अंक १७६, अगस्त २००७, पृष्ठ 5