Saturday, October 11, 2008

मधुर व्यवहार -२ |


..................." प्रेम , सहानुभूति, सम्मान, मधुर वचन, सक्रिय हित, त्याग-भावना आदि से हर किसीको सदा के लिए अपना बना सकते हो | तुम्हारा ऐसा व्यवहार होगा तो लोग तुम्हारे लिए बड़े-से-बड़े त्याग के लिए तैयार हो जायेंगे | तुम्हारी लोकप्रियता मौखिक नही रहेगी | लोगो के हृदय में बड़ा मधुर और प्रिय स्थान तुम्हारे लिए सुरक्षित हो जायेगा | तुम भी सुखी हो जाओगे और तुम्हारे संपर्क में आनेवाले को भी सुख शान्ति मिलेगी |

कोई व्यक्ति हमारे कथन अथवा निर्देश पर किस रूप में अमल करेगा यह हमारे कहने के ढंग पर निर्भर करता है और सही तरीका वही है जो काम करनेवाले के चित्त में अनुकूल परिणाम उत्पन्न करे | किसीको व्यंग अथवा कटाक्षयुक्त वचन कहे तो उसके चित्त में क्षोभ पैदा होता है | हमें हानि होती है |

" आप तो भगतडे हो....बुद्धू हो.........कुछ जानते नही ......." इस प्रकार बात करने के ढंग से बात बिगड़ जाती है | बात कहने के ढंग पर बात बनती या बिगड़ती है | जिनकी वाणी में विनय-विवेक है वे थोड़े ही शब्दों में अपने ह्रदय के भाव प्रकट कर देते है | वे ऐसी बात नही बोलते जिससे किसीको ठेस पहुँचती हो |

सब के साथ सहानुभूति और नम्रता से युक्त मित्रता का बर्ताव करो | संसार में सबसे ज्यादा मनुष्य ऐसे ही मिलेंगे जिनकी कठिनाइयाँ और कष्ट तुम्हारी कल्पना से कही अधिक है | तुम इस बात को समझ लो और किसीके भी साथ अनादर और द्वेष का व्यवहार न करके विशेष प्रेम का व्यवहार करो |

तुमसे कोई बुरा बर्ताव करे तो उसके साथ भी अच्छा बर्ताव करो और ऐसा करके अभिमान न करो | दुसरो की भलाई में तुम जितना ही अपने अहंकार को और स्वार्थ को भूलोगे उतना ही तुम्हारा वास्तविक हित अधिक होगा |

अच्छा बर्ताव और निश्छल प्रेम का व्यवहार करके सबमे प्रेम और भलाई का वितरण करो | यही सच्ची सहायता और सच्चा आश्वासन है | तुम जगत से जैसा व्यवहार करोगे वैसा ही तुम पाओगे भी | "

........................................................पुस्तक "मधुर व्यवहार ", पृष्ठ क्रमांक १३,१४,१५ , संत श्री आसारामजी आश्रम प्रकाशन |