Friday, October 10, 2008

मधुर व्यवहार |


.............." प्रतिध्वनी ध्वनी का अनुसरण करती है और ठीक उसीके अनुरूप होती है| इसी प्रकार दुसरो से हमें वही मिलता है और वैसा ही मिलता है जैसा हम उनको देते है | अवश्य ही वह बीज-फल न्याय के अनुसार कई गुना बढ़कर मिलता है | सुख चाहते हो तो दुसरो को सुख दो | मान चाहते हो तो औरो को मान प्रदान करो | हित चाहते हो तो हित करो और बुराई चाहते हो तो बुराई करो | जैसा बीज बोओगे वैसा ही फल पाओगे |

यह समझ लो की मीठी और हितभरी वाणी दुसरो को आनंद, शांति और प्रेम का दान करती है और स्वयं आनंद, शांति और प्रेम को खींचकर बुलाती है | मीठी और हितभरी वाणी से सदगुणों का पोषण होता है , मन को पवित्र शक्ति प्राप्त होती है और बुद्धि निर्मल बनती है | वैसी वाणी में भगवान का आशीर्वाद उतरता है और उससे अपना, दुसरो का , सब का कल्याण होता है | उससे सत्य की रक्षा होती है और उसी में सत्य की शोभा है |

मुख से ऐसा शब्द कभी मत निकालो जो किसी का दिल दुखाये और अहित करे | कड़वी और अहितकारी वाणी सत्य को बचा नही सकती और उसमे रहनेवाला आंशिक सत्य का स्वरुप भी बड़ा कुत्सित और भयानक हो जाता है जो किसी को प्यारा और स्वीकार्य नही लगता | जिसकी जबान गन्दी है उसका मन भी गन्दा होता है |
महामना पंडित मदनमोहन मालवीयजी से किसी विशिष्ट विद्वान ने कहा :" आप मुझे सौ गाली देकर देखिये, मुझे गुस्सा नही आयेगा |"
महामना ने जो उत्तर दिया वह उनकी महानता को प्रकट करता है | वे बोले : " आपके क्रोध की परीक्षा तो बाद में होगी, मेरा मुँह तो पहले ही गन्दा हो जायेगा |"
ऐसी गन्दी बातों को प्रसारित करने में न तो अपना मुँह गन्दा बनाओ और न औरो की वैसी बातें ग्रहण ही करो | दूसरा कोई कड़वा बोले, गाली दे तो तुम पर तो तभी उसका प्रभाव होता है जब तुम उसे ग्रहण करते हो | रज्जब ने कहा है :
रज्जब रोष न कीजिये कोई कहे क्यों ही |
हँसकर उत्तर दीजिये, हाँ बाबाजी ! यों ही ||
ढंग से कही हुई बात प्रिय और मधुर लगती है ............"

-------------------पुस्तक -" मधुर व्यवहार ", पृष्ठ क्रमांक २,३,४, संत श्री आसारामजी आश्रम प्रकाशन |